तारा ने भी पुराने दिन याद करते हुए कहा, ‘‘क्या खूब याद दिलाई. हम तो देव आनंद पर फिदा थे. हाय जालिम, क्या चलता था. मेरे पति तो मधुबाला के इतने दीवाने थे कि घर पर उस की फोटो टांग रखी थी. इन का बस चलता तो सौतन बना करले आते.’’
‘‘तभी एक देव आनंद जैसे लड़के पर रीझ गई थीं शादी के बाद?’’
‘‘ताना मार रही हो या तारीफ कर रही हो?’’
‘‘अरे सहेली हूं तेरी, ताना क्यों मारूंगी. अपनी जवानी के दिन याद भी नहीं कर सकते. फिर जवानी में तो सब से खताएं होती हैं.’’
‘‘हां, तू भी तो गफूर भाई को दिलीप कुमार समझ दिल दे बैठी थी.’’
‘‘अरे, उस कमबख्त की याद मत दिलाओ. मुझ से आशिकी बघारता रहता और निकाह कर लिया किसी और से. समझा था दिलीप कुमार, निकला प्राण. मेरा तो घर टूटतेटूटते बचा.’’
‘‘हम औरतों का यही तो रोना है. जिसे देव आनंद समझ कर बतियाते रहे उस ने महल्लेभर में बदनामी करवा दी हमारी. यह तो अच्छा हुआ कि हमारे पति को हम पर भरोसा था. फिर जो पिटाई की थी उस की, वह दोबारा दिखा नहीं. जिसे देव आनंद समझा वह अजीत निकला. खैर, पुरानी बातें छोड़ो, यह बताओ कि जफर भाई के बारे में कुछ सुना है?’’
‘‘हां, सुना तो है. घर की नौकरानी को पेट से कर दिया. इज्जत और जान पर आई तो निकाह करना पड़ा.’’
‘‘लेकिन जफर ठहरे 50 साल के और लड़की 20 साल की.’’
‘‘अरे मर्द और घोड़े की उम्र नहीं देखी जाती. घोड़ा घास खाता है और मर्द ने सुंदर जवान लड़की देखी कि मर्दों का दिमाग घास चरने चला जाता है.’’