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कुछ लोगों की टांगें जरूरत से ज्यादा लंबी होती हैं, इतनी कि वे खुद ही जा कर दूसरों के मामले में अड़ जाती हैं. ऐसे ही अप्राकृतिक टांगों वाले व्यक्ति हैं मेरे बड़े भाई सुधीर भैया. वैसे तो लड़ने या लड़ाई के बीच में पड़ने का उन्हें कोई शौक नहीं है पर किसी दलितशोषित, जबान रहते भी खामोश, मजबूर व्यक्ति पर कुछ अनुचित होते देख कर उन का क्षत्रिय खून उबाल मारने लगता है. फिर वे उस बेचारे के उद्धार में लग जाते हैं. उन के साथ ऐसा बचपन से है. जाहिर है कि स्कूल और महल्ले में वे अपने इस गुण के कारण नेताजी के नाम से प्रसिद्ध रहे हैं.

भैया उम्र में मुझ से 2 वर्ष बड़े हैं. हम दोनों बचपन से बहुत करीब रहे हैं और एक ही स्कूल में होने के कारण हम दोनों को एकदूसरे के पलपल की खबर रहती थी. कब कौन क्लास से बाहर निकाला गया, किस लड़के ने मुझे कब छेड़ा या किस शिक्षक को देखते ही भैया के पांव कांपने लगते थे आदिआदि. जाहिर है कि भैया की अड़ंगेबाजी की नित नई कहानियां मुझे फौरन मिल जाती थीं.

चौथी कक्षा की बात है. भैया को जानकारी मिली कि उन की क्लास के एक शांत सहपाठी का बड़ी क्लास के कुछ उद्दंड छात्रों ने जीना मुश्किल कर रखा था. फिर क्या था, पूरी तफ्तीश करने के बाद लंच के दौरान बाकायदा उन बड़े लड़कों को रास्ते में रोक कर, लंबाचौड़ा भाषण दे कर और बात न मानने की स्थिति में शारीरिक नुकसान पहुंचाने की धमकी दे कर दुरुस्त किया गया.

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