‘टिंगटौंग’ दरवाजे की घंटी बजी. टू बीएचके फ्लैट के भूरे रंग के दरवाजे के ऊपर नाम गुदे हुए थे- डा. भाष्कर सेन, श्रीमती गार्गी सेन, आईपीएस. अधपके बालों वाली एक प्रौढ़ा ने दरवाजा खोला और मुसकराते हुए कहा, ‘‘दीदी, आज बड़ी देर कर दी तुम ने. दादाबाबू तो कब के आए हुए हैं. काफी थकीथकी दिख रही हो,’’ कहतेकहते उस ने महिला के हाथों से बैग ले लिया और फिर कहा, ‘‘तुम जाओ कपड़े बदल लो, मैं खाना गरम करती हूं.’’ ये हैं श्रीमती गार्गी सेन, जौइंट कमिश्नर औफ पुलिस, (क्राइम), आईपीएस 1995 बैच और इस घर की मालकिन. गार्गी जूते उतार कर बैडरूम की तरफ बढ़ गई. बैडरूम में उस के पति भाष्कर बिस्तर पर सफेद पजामा और कुरता पहने, आंखों पर चश्मा लगाए पैरासाइकोलौजी की किताब पढ़ रहा था.
गार्गी के पैरों की आहट सुनते ही उस ने आंखें किताब से ऊपर उठाईं और आंखों से चश्मा उतारा. किताब को बिस्तर के पास रखी साइड टेबल पर रखते हुए कहा, ‘‘आज लौटने में बहुत देर हो गई तुम्हें, उस नए मामले को ले कर उलझी हो क्या?’’ गार्गी उस के प्रश्न का उत्तर दिए बिना ही बिस्तर पर उस की बगल में जा बैठी. भाष्कर ने उस की तरफ देखा और उस के गालों पर हाथ फेरते हुए कहा, ‘‘बहुत अपसेट लग रही हो, जाओ यूनिफौर्म बदलो, फ्रैश हो कर आओ, डिनर टेबल पर मिलते हैं.’’
गार्गी ने बिना कुछ कहे सिर हिला कर हामी भरी. बड़ी मुश्किल से रोंआसी आवाज में उस के मुंह से निकला, ‘‘हूं.’’ फिर एक लंबी सांस ले कर भाष्कर की तरफ आंखें उठाईं. उस की आंखों में आंसू लबालब भरे हुए थे, मानो अभी छलकने को तैयार हों. भाष्कर ने पहले ही उस की परेशानी भांप ली थी. उस ने गार्गी को आलिंगन किया और उसे अपने बाहुपाश में जोर से जकड़ते हुए 2-3 दफे उस की पीठ ठोकी.
गार्गी ने अपना सिर भाष्कर के कंधे पर रखते हुए कहा, ‘‘तुम कैसे बिना कुछ कहे ही सब समझ जाते हो.’’ भाष्कर ने उस के कंधे पर फिर एक बार थपकी दी और कहा, ‘‘जाओ, हाथमुंह धो कर आओ, बहुत भूख
लगी है.’’ गार्गी ने जबरन अपने होंठों को चीर कर बनावटी मुसकराने की कोशिश की और उठ कर बाथरूम की ओर बढ़ गई.
कुछ देर बाद कपड़े बदल कर जब वह डाइनिंग टेबल पर आई तो भाष्कर पहले से ही वहां मौजूद था. सामने टीवी चल रहा था. गार्गी भाष्कर की बगल वाली सीट पर आ कर बैठ गई और रिमोट ले कर टीवी चैनल बदल दिया. इतने में प्रौढ़ा अंदर से आई और खाना परोसने लगी.
टीवी पर एक न्यूज चल रही थी और दिनभर की महत्त्वपूर्ण खबरों को एक ही सांस में न्यूज रीडर पढ़े जा रही थी, ‘‘चांदनी चौक कांड का आज 5वां दिन. मंत्री आशुतोष समाद्दार के भतीजे मंटू समाद्दार और उस के 3 साथियों को पुलिस हिरासत में लिया गया. डैफोडिल अस्पताल के सीएमओ डा. नीतीश शर्मा ने बताया कि नाबालिग लड़की की हालत नाजुक. शरीर पर चोटों के कई निशान पाए गए हैं. हमारे संवाददाता से बातचीत में मंत्री आशुतोष समाद्दार ने बताया, ‘मेरा भतीजा निर्दोष है, उसे फंसाया जा रहा है. लड़की का चालचलन ठीक नहीं है. उस की पारिवारिक पृष्ठभूमि भी सही नहीं है. उस की मां के पेशे के बारे में तो आप सब जानते ही होंगे, मैं और क्या कहूं. ऐसे में आप ऐसी लड़कियों से क्या आशा रख सकते हैं?’’ संवाददाता बोला, ‘पर ऐसा क्यों किया उस ने? व्यक्तिगत स्तर पर आप से कोई दुश्मनी है या विरोधी पार्टी का काम है, आप का क्या मानना है?’
मंत्री बोले, ‘कुछ कह नहीं सकते, विरोधी पार्टी का हाथ इस के पीछे है या नहीं, यह पता लगाना तो पुलिस का काम है. मैं बस इतना ही कहूंगा कि मेरा भतीजा निर्दोष है, उसे पैसों के लिए फंसाया जा रहा है. ऐसी लड़कियों के लिए यह पैसे कमाने का एक जरिया है.’ न्यूज रीडर ने अब कहा, ‘‘आइए जानते हैं कि इस मामले में पुलिस का क्या कहना है. जौइंट सीपी (क्राइम) गार्गी सेन से हमारे संवाददाता ने बात की.’’ ‘मामले की छानबीन हो रही है, मैडिकल रिपोर्ट आने से पहले कुछ कहा नहीं जा सकता. हम अपनी तरफ से मामले की सचाई तक पहुंचने की पूरी कोशिश कर रहे हैं.’
संवाददाता ने अपना अंदेशा जाहिर किया, ‘मुख्यमंत्री के करीबी रह चुके आशुतोष समाद्दार की राजनीतिक क्षेत्र में पहुंच काफी तगड़ी है. इसलिए यह आशंका जाहिर की जा रही है कि वे अपनी राजनीतिक ताकत का इस्तेमाल कर सुबूतों के साथ छेड़छाड़ करने या पुलिस जांच को प्रभावित करने की कोशिश कर सकते हैं. कैमरामैन रंजन मुखोपाध्याय के साथ मौमिता राय, सी टीवी न्यूज, बंगाल.’ समाचार खत्म होते ही गार्गी और ज्यादा परेशान दिखने लगी. भाष्कर ने परिस्थिति को भांपते हुए झट से अपने हाथ में रिमोट ले कर चैनल बदल दिया. फिर धीमी आवाज में कहा, ‘‘पिछले 4-5 दिनों से यह खबर सभी अखबारों व टीवी चैनलों पर छाई हुई है. मैं रोज इस का फौलोअप देखता रहता हूं. मैं जानता हूं तुम…’’ अभी बात पूरी भी नहीं हुई थी कि इतने में गार्गी ने थाली आगे की ओर सरकाते हुए आवाज लगाई, ‘‘बेनु पीसी, मेरी प्लेट उठा लो, खाने का मन नहीं है.’’
प्रौढ़ा रसाईघर से दौड़ती हुई आई और विनय भाव से कहने लगी, ‘‘क्या हुआ दीदीभाई, क्यों खाने का मन नहीं, खाना अच्छा नहीं बना है क्या?’’ भाष्कर ने गार्गी के हाथ पर अपना हाथ रखते हुए कहा, ‘‘खा लो, वरना तबीयत खराब हो जाएगी.’’ और प्रौढ़ा की ओर मुड़ कर बोले, ‘‘पीसी, जरा रसोई से गुड़ ले आओ, इस का स्वाद बदल जाएगा.’’
गार्गी रोंआसी हो गई. उस ने नजरें उठा कर भाष्कर की आंखों में देखा. उन आंखों में आश्वासन था, समर्थन था और थी एक सच्चे साथी की प्रेमभावना जिस ने हर परिस्थिति में साथ रहने का वादा किया है. उस के मुंह से बस इतना निकला, ‘‘तुम नहीं जानते, भाष्कर कितना पौलिटिकल प्रैशर है.’’ भाष्कर ने इतने में उस के मुंह में निवाला ठूंस दिया और कहा, ‘‘मैं कुछ नहीं जानता, पर मैं सबकुछ समझ सकता हूं. पहले खाना खत्म करो.’’
गार्गी ने आंखों की पलकों से अपने आंसुओं को छिपाने की भरसक कोशिश करते हुए कहा, ‘‘मैं क्या करूं भाष्कर, एक तरफ मेरा कैरियर, दूसरी तरफ मेरा जमीर. अगर मैं समझौता नहीं करती हूं तो वे मेरे कैरियर को बरबाद कर देंगे. ऐसे में मुझे क्या
करना चाहिए?’’ भाष्कर ने कहा, ‘‘मैं तुम्हें सालों से जानता हूं. मुझे तुम पर पूरा भरोसा है. चाहे कुछ भी हो जाए तुम कुछ गलत कर ही नहीं सकतीं. तुम सच्ची हो और मैं यह भी जानता हूं कि तुम सचाई के साथ ही रहोगी, और तुम्हारे साथ रहेगा हम सब का विश्वास, मेरे व तुम्हारे शुभचिंतकों का प्रेम और सहयोग. मैं जानता हूं इन सब के साथ तुम जरूर अपनी लड़ाई में विजयी होगी, चाहे विपक्ष कितना ही शक्तिशाली क्यों न हो. और देखो, बातोंबातों में कैसे खाना भी खत्म हो गया.’’
गार्गी ने देखा, सामने प्लेट खाली थी. उस ने कहा, ‘‘सच, तुम कब मेरे मुंह में निवाला भरते रहे, मुझे पता ही नहीं चला. तुम सचमुच मेरी बच्चों की तरह केयर करते हो. मैं तुम जैसा पति पा कर बहुत खुश हूं. पापा के बाद, बस, तुम ही तो हो जिसे हर मुसीबत में मेरा मार्गदर्शन करते हुए पाती हूं. थैंक्यू.
‘‘आज बहुत दिनों बाद पापा बारबार याद आ रहे हैं. मैं जब छोटी थी वे अकसर कहा करते थे, ‘बेटा, जब भी जीवन में किसी मोड़ पर कोई दुविधा हो तो अपने जमीर की सुनना. ऐसे मोड़ पर तुम्हें 2 रास्ते मिलेंगे. बेईमानी का रास्ता आसान होगा पर अगर तुम लंबी दौड़ में विजयी होना चाहती हो और अपने जीवन में सुखचैन चाहती हो तो कभी भी उस रास्ते को मत अपनाना वरना अपनी ही नजरों में सदा के लिए छोटी हो जाओगी.’’’ बात खत्म होते ही भाष्कर ने कहा, ‘‘चलो, अब बहुत रात हो गई है,
हमें सो जाना चाहिए. कल फिर तुम्हें सुबह उठना भी तो है. ड्यूटी पर जाना है न.’’
गार्गी ने हामी भरते हुए सिर हिलाया. उस के होंठों पर मंद मुसकराहट थी और चेहरे पर बेफिक्री का भाव. अगले दिन शाम को 6 बजे दरवाजे की घंटी बजी. अंदर से बेनु पीसी आई और दरवाजा खोला. गार्गी के चेहरे पर सुकून और अजीब सी खुशी झलक रही थी. अंदर घुस कर जूते उतारते हुए उस ने कहा, ‘‘बेनु पीसी, अलमारी के ऊपर से मेरा सूटकेस उतार कर रखना. ट्रैवल बैग स्टोर में रखा हुआ है, उस में मेरी रोजमर्रा की जरूरत की चीजें और कुछ ड्राईफ्रूट्स डाल देना.’’
प्रौढ़ा ने पूछा, ‘‘क्यों, कहीं जा रही हो क्या?’’ गार्गी बाथरूम की ओर बढ़ती हुई बोली, ‘‘हूं, पहाड़ी इलाका है. परसों निकलूंगी. समझबूझ कर सारा सामान रख देना.’’
प्रौढ़ा प्रश्नों की बौछार करने ही वाली थी, मसलन, ‘कितने दिनों के लिए जाओगी, कब तक लौटोगी, दादाबाबू भी साथ जाएंगे या नहीं…’ पर इतने में गार्गी वहां से बैडरूम की तरफ जा चुकी थी. बैडरूम में पहुंच कर गार्गी ने भाष्कर को फोन किया और कहा, ‘‘जल्दी घर आओ, तुम से कुछ कहना है. नहीं, कुछ नहीं हुआ…न, कुछ नहीं चाहिए. बस, तुम आ जाओ.’’ घंटाभर बाद भाष्कर घर लौटने के बाद कपड़े बदल कर टीवी के सामने बैठ गए. गार्गी उन के पास वाली कुरसी पर जा बैठी. टीवी पर न्यूज चल रही थी, ‘‘ब्रेकिंग न्यूज, चांदनी चौक कांड ने लिया नया मोड़. मामले की देखरेख कर रहे आला पुलिस अधिकारी का मानना है कि मंटू समाद्दार और उस के साथी हैं दोषी. जौइंट सीपी (क्राइम) गार्गी सेन ने प्रैस को दिया बयान, ‘मैडिकल रिपोर्ट के अनुसार दुराचार किया गया है. हम ने नाबालिग लड़की का बयान लिया है. आरोपियों की पहचान हो गई है. कानून अपना काम करेगा. दोषी कोई भी हों, उन के खिलाफ आईपीसी की धाराओं के तहत कार्यवाही की जाएगी. पीडि़ता को इंसाफ जरूर मिलेगा. मैं ने अपनी रिपोर्ट जमा कर दी है और चार्जशीट भी कोर्ट में पेश किए जाने के लिए तैयार है.’ ’’
न्यूज रीडर ने आगे खबर पढ़ी, ‘‘जौइंट सीपी साहिबा के इस बयान के कुछ ही घंटों में उत्तरी बंगाल के किसी दूरस्थ पहाड़ी इलाके में उन के तबादले की घोषणा हुई. इस संबंध में तरहतरह की अटकलें लगाई जा रही हैं. यह तबादला क्या उन की सच्ची बयानबाजी की सजा है? क्या राजनीतिक दिग्गजों की स्वार्थसिद्धि न होने के परिणामस्वरूप प्रभाव का इस्तेमाल कर के यह तबादला करवाया गया. अब चलते हैं मौके पर मौजूद संवाददाता के पास. हां, मौमिता, इस मामले में पुलिस का क्या कहना है?’’ संवाददाता मौमिता बताती है, ‘पुलिस का तो यह कहना है कि यह रूटीन तबादला था. इस फैसले पर गार्गी सेन की कोई प्रतिक्रिया नहीं मिल पाई है.
‘अब सवाल यह उठता है कि क्या इस से पुलिस की छानबीन पर कोई प्रभाव पड़ेगा, क्या राजनीतिक प्रभाव का इस्तेमाल कर सुबूतों के साथ छेड़छाड़ करने की कोशिश की जा सकती है? ऐसी परिस्थिति में क्या पीडि़ता को इंसाफ मिल जाएगा? कैमरामैन रंजन मुखोपाध्याय के साथ मौमिता राय, सी टीवी न्यूज, बंगाल.’ समाचार खत्म होते ही गार्गी और भाष्कर दोनों ने एकदूसरे की तरफ देखा. गार्गी ने भाष्कर से पूछा, मैं ने सही किया न?’’
भाष्कर ने उस का हाथ अपने हाथों में लिया और अपनी उंगलियां उस की उंगलियों में फंसा कर मुसकराते हुए हामी भर कर सिर हिला दिया. गार्गी ने अपने सिर का बोझ उस के कंधे पर रख कर आंखें बंद कर लीं. उस की आंखों से आंसुओं की धारा टपक रही थी.
भाष्कर ने उस के कंधे पर हाथ रख कर कहा, ‘‘यह क्या, तुम रो रही हो? आज तो विजय दिवस है, झूठ पर सच की विजय, बुराई पर अच्छाई की विजय. आज से तुम आजाद हो, तुम्हें और ग्लानि का बोझ वहन नहीं करना पड़ेगा.’’ गार्गी ने आंसू पोंछते हुए कहा, ‘‘कुछ नहीं, ये तो कई दिनों से अंदर जमा थे, आज बाहर आए हैं. कोई और अफसोस नहीं, बस, तुम से दूर…’’ भाष्कर ने बात बीच में काटते हुए कहा, ‘‘अब तो हम और ज्यादा करीब हो गए. साथ रहने का अर्थ क्या हमेशा पास रहना है? अगर मेरी गार्गी बदल जाती तो शायद मैं उसे पहले जैसा प्यार न दे पाता और पास रहने के बावजूद उस से काफी दूर हो जाता. तुम सचाई के साथ हो और सदा रहना, मैं सदैव तुम्हारे साथ रहूंगा.’’
इतने में बेनु पीसी ने आ कर टीवी का चैनल बदल दिया था. टीवी पर संगीत बज रहा था, ‘‘इंसाफ की डगर पे…अपने हो या पराए, सब के लिए हो न्याय. देखो, कदम तुम्हारा, हरगिज न डगमगाए, रस्ते बड़े कठिन हैं, चलना संभलसंभल के…इंसाफ की डगर पे…’’