मेरे घर के सामने एक कम्युनिटी हाल है, या अगर यों कहें कि कम्युनिटी हाल के सामने मेरा घर है तो भी घर की भौगोलिक स्थिति में कोई अंतर नहीं आएगा. कम्युनिटी हाल के सामने मेरा घर होना ही मेरी सब से बड़ी मुसीबत है. इस कम्युनिटी हाल में आएदिन ब्याहशादी, अन्य समारोह और पार्टियां आयोजित होती रहती हैं.
पर एक मुसीबत और भी है, वह यह कि मेरे घर के आंगन में एक आम का पेड़ भी है. बस, यों ही समझिए कि करेला और नीम चढ़ा जैसी स्थिति है. शुभकार्य हो और उस में आम के पत्तों का तोरण न बांधा जाए ऐसा हो ही नहीं सकता. कम्युनिटी हाल के सामने घर के आंगन में प्रवेशद्वार पर ही आम का पेड़ हो, इस का दर्द सिर्फ वही भुक्तभोगी जान सकता है जिस का घर कम्युनिटी हाल के सामने हो.
जैसे ही मेजबान कम्युनिटी हाल किराए पर ले कर अपना मंगलकार्य शुरू करता है, उस के कुछ देर बाद ही प्रभात वेला में मेरे दरवाजे की घंटी बजती है. संपन्न घर के कोई सज्जन या सजनी विनम्रता से पूछते हैं, ‘‘आप को कष्ट दिया. कुछ आम के पत्ते मिल सकेंगे क्या? बेटी की शादी है, मंडप में तोरण बांधना है. और सब सामान तो ले आए, पर देखिए, कैसे भुलक्कड़ हैं हम कि आम के पत्ते तो मंगाना ही भूल गए.’’
शायद उन्हें आम का पेड़ देख कर ही आम के पत्तों का तोरण बांधने की सूझती है. इनकार कैसे करना चाहिए, यह कला मुझे आज तक नहीं आई. हर बार यही होता है कि जरूरत से ज्यादा पत्ते तोड़ लिए जाते हैं. इन में से कुछ पत्ते मेरे साफसुथरे आंगन में इधरउधर बिखर कर बेमौसमी पतझड़ का आनंद देते हैं और कुछ पत्ते मेरे घर से कम्युनिटी हाल तक ले जाने में सड़क पर लावारिस से गिरते जाते हैं. जिन के घर विवाह हो रहा है, उन को इस की कोई चिंता नहीं होती. पर मुझे तो ऐसा महसूस होता है जैसे कोई मेरा रोमरोम मुझ से खींच कर ले जा रहा है. पर अपना यह दर्द मैं किस से कहूं? कैसे कहूं?