मेरे मुंह से निकल गया था, ‘‘जूली, मुझे तो खेद इस बात का रहता है कि मेरी बेटी की अभी तक शादी नहीं हुई है. मैं तो उस दिन की बेसब्री से प्रतीक्षा करती हूं जब वह अपने बच्चों को मेरे पास छोड़ कर जाने की स्थिति में हो.’’
‘‘शायद यह संस्कृतियों का अंतर है,’’ जूली ने कहा, ‘‘मैं मानती हूं कि नई पीढ़ी को आगे बढ़ते देखने से बड़ा सुख तो कोई दूसरा नहीं परंतु मार्क और फियोना को भी तो हमारी सुविधा का ध्यान रखना चाहिए. हमेशा यह मान लेना कि हमें किसी भी तरह की कोई कठिनाई नहीं होगी, यह भी तो ठीक नहीं.’’
जूली के उत्तर पर मुझे काफी आश्चर्य हुआ, क्योंकि मैं जानती थी कि यदि उसे सचमुच किसी बात की चिंता है तो यह कि किस तरह सिमोन का भी घर दोबारा बस जाए. वह उसे किसी न किसी तरह ऐसे स्थानों पर भेजती रहती थी जहां उस की मुलाकात किसी अच्छे युवक से हो जाए. वह स्वयं हर मुलाकात में न केवल पूरी रुचि लेती थी बल्कि उस के बारे में मुझे भी आ कर बताती थी.
एक दिन जब जूली काम पर आई तो उसे देखते ही मैं समझ गई कि कुछ गड़बड़ है. पहले तो वह टालमटोल करती रही किंतु अंत में उस ने बताया, ‘‘सिमोन की बात फिर एक बार टूट गई. लगभग 3 सप्ताह पहले सिमोन के बौयफ्रैंड ने उसे एक रौक म्यूजिक कंसर्ट में उस के साथ चलने को कहा था. उसी दिन सिमोन की एक पक्की सहेली का जन्मदिन भी था. वैसे भी सिमोन को रौक म्यूजिक ज्यादा पसंद नहीं. जब सिमोन ने अपनी मजबूरी बताई तो बौयफ्रैंड ने कुछ नहीं कहा. वह अकेला ही चला गया. उस के बाद उस की ओर से कुछ सुनाई नहीं दिया. न फोन, न मैसेज. सिमोन ने कई बार संपर्क करने की कोशिश की. परंतु कोई उत्तर नहीं.
‘‘गत रविवार को वह हिम्मत कर के उस स्थान पर गई जहां उस का बौयफ्रैंड अकसर शाम बिताता है. वहां उस ने उसे एक लड़की के साथ देखा. सिमोन को गुस्सा तो बहुत आया परंतु कोई हंगामा खड़ा न करने के विचार से वहां से चुपचाप चली आई. शायद बौयफ्रैंड ने उसे देख लिया था. कुछ समय बाद सिमोन के मोबाइल पर संदेश छोड़ दिया, ‘सौरी’.’’
मैं ने पूछा, ‘‘कोई स्पष्टीकरण?’’
‘‘नहीं. केवल यह कि वह लड़की उस की रुचियों को ज्यादा अच्छी तरह समझती है. शशि, मुझे तब से लगातार ऐसा महसूस हो रहा है कि सिमोन नहीं, मैं अपने लिए जीवनसाथी ढूंढ़ने में असफल हो गई हूं.’’
मेरे अपने परिवार में भी अपनी पुत्री शिवानी के लिए वर ढूंढ़ने की प्रक्रिया जोरशोर से चल रही थी. मैं भी जूली को हर छोटीबड़ी घटना की जानकारी देती रहती थी. किस तरह हम विज्ञापनों में से कुछ नाम चुनते, उन के परिवारों से संपर्क करते और आशा करते कि इस बार बात बन जाए. किस तरह ऐसे परिवारों में से कुछ से 4-5 की टोली हमारे घर आती.
कुछ परिवार लड़कालड़की को सीधा संपर्क करने की सलाह देते. मैं सोचती कि चाहे संपर्क सीधा करें या परिवार के साथ आएं, बात तो आगे बढ़ाएं.
आशानिराशा के हिंडोले में महीनों तक झूलने के बाद, जब आखिरकार शिवानी की स्वीकृति से एक परिवार में उस का संबंध होना निश्चित हो गया तो मेरी प्रसन्नता का ठिकाना न रहा. मैं ने जूली को भी यह शुभ समाचार सुनाया. वह प्रसन्न हो कर बोली, ‘‘बधाई. मैं शिवानी के विवाह में अवश्य सम्मिलित होऊंगी. और याद रहे, मैं तुम्हारी परंपराओं से बहुत प्रभावित हूं. उन के बारे में अधिक से अधिक जानना चाहती हूं. इसलिए तुम मुझे विवाह के सभी छोटेबड़े कार्यक्रमों के लिए निमंत्रित करती रहना.’’
विवाह के कार्यक्रमों की शृंखला में एक था भात. उस दिन मेरे भाई और भाभी सपरिवार भात ले कर आए थे. मेरी सूचना के आधार पर जूली सुबह से ही हमारे घर आ गई थी. मेरे हर काम में वह साथ रही. वह सबकुछ देखनासमझना चाहती थी. जब भातइयों की टोली को हमारे घर के दरवाजे पर रोक दिया गया तो जूली आश्चर्यचकित उत्सुकता के साथ मुझ से आ सटी थी. उस ने देखा कि किस प्रकार भातइयों को एक पटरे पर खड़ा कर के बारीबारी से उन की आरती उतारी गई और किस प्रकार भात की सामग्री भेंट की गई. उस में वस्त्र, आभूषण और मिठाइयां व अन्य उपहार सम्मिलित थे. अवसर मिलने पर मैं ने जूली को बताया, ‘‘इसी प्रकार बेटी के पिता के भाईबहनों की ओर से भी उपहार आएंगे. ये परंपराएं सभी को साथ ले कर चलने की भावना से विकसित हुई हैं. वृहत परिवार की प्रतिभागिता का एक परिष्कृत रूप तो है ही, साथ में विवाह पर होने वाले खर्चों को बांटने का अनूठा तरीका भी है. दादादादी, नानानानी, चाचाचाची, मामामामी, फूफाफूफी सभी खर्च के बोझ को बांटने के काम में उत्साह के साथ भाग लेते हैं,’’ मेरे इस स्पष्टीकरण से जूली बहुत प्रभावित हुई थी.
शिवानी को चुन्नी चढ़ाने की रस्म के लिए उस के ससुराल से लगभग 30 लोग आए थे. हमारी ओर से भी इतने ही सदस्य रहे होंगे, जिन में से एक जूली थी. हमारा घर विशेष रूप से बड़ा नहीं है. इतने लोग किस तरह उस में समा गए वह जूली के लिए एक अलग ही अनुभव था. परंतु उस से भी अधिक उस के मन को प्रफुल्लित कर डाला था चुन्नी के झीने कपड़े के पीछे छिपे नए परिवार के संरक्षण के भाव ने.
शिवानी के विवाह के कुछ समय बाद जूली ने मुझे सूचना दी कि उस के विवाह की 40वीं वर्षगांठ आने वाली है जिस पर वह एक आयोजन करेगी, ‘‘अभी से डायरी में लिख कर रख लो, 20 अगस्त. तुम्हें अपने पति के साथ आना होगा. स्थान है बुश म्यूज होटल.’’
बुश म्यूज होटल को कौन नहीं जानता. 150 साल पुराना है वह होटल. कहते हैं कि एक समय बड़ी संख्या में घोड़ागाडि़यां खड़ी करने की व्यवस्था उस से ज्यादा किसी अन्य होटल में नहीं थी. समय के साथ हुए परिवर्तनों के कारण अब ग्राहक घोड़ागाडि़यों के बदले कारों में आते थे. जूली ने मुझे बताया कि उस के लिए होटल के मैनेजर ने वही कमरा नंबर101 बुक कर दिया था, जिस में उस ने 40 वर्ष पूर्व अपनी सुहागरात मनाई थी.
यद्यपि वह होटल आबादी वाले क्षेत्र में नहीं था, मैं उस के सामने से अनगिनत बार गुजर चुकी थी. भीतर जाने का वह पहला अवसर था. वह एक भव्य होटल है, इस का आभास इमारत में जाने वाली सड़क पर जाते ही हो गया. होटल का मुख्यद्वार मुख्य सड़क पर नहीं, होटल के पिछवाड़े था. उस तक जाने के लिए एक लंबी, पतली सड़क बनी थी, जो दोनों ओर फूलों की क्यारियों में ढक गई लगती थी. उन क्यारियों के पार मखमली घास के मैदान थे जो टेम्स नदी के तट तक फैले हुए थे. अभी मैं और मेरे पति मानवनिर्मित उस प्राकृतिक सौंदर्य के प्रबल प्रभाव को अपने चारों ओर अनुभव कर ही रहे थे कि जा पहुंचे मुख्यद्वार के सामने. वह एक होटल का नहीं, किसी प्राचीन ग्रीक मंदिर का द्वार लगा.