धुन ने सुबह उठते ही सब से पहले अपने कमरे के परदे हटाए. रविवार की सुबह, भीनीभीनी ठंड और उगता हुआ सूरज, इस से बेहतर और क्या हो सकता हैं?
गुनगुनाते हुए धुन ने चाय का पानी चढ़ाया और घर पर कौल लगाई.
उधर से मम्मी की आवाज आई, ‘‘तू कब आएगी घर पर? दीवाली पर भी बस 2 दिनों के लिए आई थी. 30 की होने वाली है, कब शादी करेगी और कब बच्चे होंगे.’’
अब तो धुन को ऐसा लगता था मानो यह भी हर हफ्ते का एक रिचुअल बन गया हो. मम्मी यह हर हफ्ते कहती मगर परिवार की तरफ से कोई प्रयत्न नहीं होता था. धुन के परिवार की चिंता बस शब्दों में ?ालकती थी.
इस शाब्दिक प्यार के पीछे धुन को मालूम था उस की मम्मी की मजबूरी है. पिता की मृत्यु के बाद बड़े भाई ने आगे बढ़ कर मम्मी की जिम्मेदारी तो अपने कंधों पर ले ली थी, मगर धुन के विवाह के लिए बड़ा भाई उदासीन था.
ऐसा नहीं है कि धुन विवाह के लिए बहुत आतुर थी मगर अपने परिवार की यह शाब्दिक परवाह उसे अंदर से नागवार गुजरती थी.
तभी धुन के मोबाइल पर मनु का नंबर फ्लैश हुआ. मनु धुन की सोसायटी में ही रहता था. मनु विवाहित और 1 बच्चे का पिता था मगर अपनी बीवी भानु से उस की पटरी सही नहीं बैठती थी.
सोसायटी के जिम में ही दोनों की जानपहचान हुई और फिर दोनों में धीरेधीरे दोस्ती हो गई थी.
मनु की साफगोई और बेलौस हंसी ने धुन के जीवन की धुन ही बदल दी थी. मगर यह जरूर था कि धुन को मनु के मूड के अनुसार ही अपनी धुन रखनी पड़ती थी.