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“लगता है विकास जीजू आए हैं. वाह, मजा आ गया. बाद में आ कर पढ़ लूंगी. 12वीं कक्षा है तो क्या हुआ? बोर्ड के ऐग्जाम का मतलब यह तो नहीं कि किसी से बात करना ही गुनाह है,” हाथों में पकड़ी किताब को बंद करते हुए मनाली मंदमंद मुसकरा कर अपने कमरे से निकल ड्राइंगरूम की ओर चल दी.

रिश्ते की दीदी कुमुद का विवाह लगभग 6 माह पहले हुआ था. विवाह से पहले कुमुद जब कभी उन से मिलने आती थी तो मनाली खूब नाकभौं सिकोड़ा करती. उस का साथ मनाली को कुछ देर के लिए भी नहीं सुहाता था, लेकिन कुमुद का विवाह हुआ तो विकास जीजू की कदकाठी और रंगयौवन देख मनाली के दिल में कुलबुलाहट सी होने लगी. अब कुमुद के साथ विकास के घर आते ही मनाली का मुखमंडल दमक उठता.
रात का अंधेरा भी उसे दीदी, जीजू के संबंधों की कल्पना से चकाचौंध करने लगा था.

'जीजू की बगल में लेटी दीदी को कैसा लगता होगा? उन के प्रेम प्रदर्शित करने पर दीदी की प्रतिक्रिया क्या होती होगी...' मन ही मन दीदी के स्थान पर स्वयं को कल्पना में रख वह अपनी सोच पर लजा जाती. दीदीजीजू के बीच हो रहे संवादों के सांकेतिक अर्थ जानने में उस की रुचि बढ़ रही थी.

'क्या महत्त्व है जीवन में ऐसे संबंधों का? क्या अंतर होता होगा दोस्ती और ऐसे रिश्तों में...' मन में घुमड़ते ऐसे सवालों का जवाब पाने को बेचैन वह अपनी सहेलियों से इस विषय पर चर्चा करना चाहती थी, मगर मातापिता के कठोर नियमों के कारण वह घर से निकल नहीं पाती थी. सहेलियों के घर आने पर भी वे क्षुब्ध हो जाते. मनाली स्वयं में खोई अंतर्मन में सब छिपाए व्याकुल सा जीवन जी रही थी.

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