आज सोनल को दूसरे दिन भी बुखार था. नितिन अनमना सा रसोई में खाना बनाने का असफल प्रयास कर रहा था. सोनल मास्क लगा कर हिम्मत कर के उठी और नितिन को दूर से ही हटाते हुए बोली,"तुम जाओ, मैं करती हूं."
नितिन सपाट स्वर में बोला,"तुम्हारा बुखार तो 99 पर ही अटका हुआ है और तुम आराम ऐसे कर रही हो,
जैसे 104 है."
फीकी हंसी हंसते हुए सोनल बोली,"नितिन, शरीर में बहुत कमजोरी लग रही है, मैं झूठ नहीं बोल रही हूं."
तभी 15 वर्षीय बेटी श्रेया रसोई में आई और सोनल के हाथों से बेलनचकला लेते हुए बोली,"आप जाइए, मैं बना लूंगी."
तभी 13 वर्षीय बेटा आर्यन भी रसोई में आ गया और बोला,"मम्मी, आप लेटो, मैं आप को नारियल पानी देता हूं और टैंपरेचर चेक करता हूं."
सोनल बोली,"बेटा, तुम सब लोग मास्क लगा लो, मैं अपना टैंपरेचर खुद चैक कर लेती हूं."
नितिन चिढ़ते हुए बोला,"सुबह से जब मैं काम कर रहा था तो तुम दोनों का दिल नहीं पसीजा?"
श्रेया थके हुए स्वर में चकले पर किसी देश का नक्शा बेलते हुए बोली,"पापा, हमारी औनलाइन क्लास थी, 1
बजे तक."
आर्यन मास्क को ठीक करते हुए बोला,"पापा, एक काम कर लो, कहीं से औक्सिमीटर का इंतजाम कर लीजिए, मम्मी का औक्सीजन लैवल चैक करना जरूरी है."
नितिन बोला,"अरे सोनल को कोई कोरोना थोड़े ही हैं, पैरासिटामोल से बुखार उतर तो जाता है, यह वायरल
फीवर है और फिर कोरोना के टैस्ट कराए बगैर तुम क्यों यह सोच रहे हो?"
श्रेया खाना परोसते हुए बोली,"पापा, तो करवाएं? नितिन को लग रहा था कि क्यों कोरोना के टैस्ट पर ₹4,000 खर्च किया जाए. अगर होगा भी तो अपनेआप ठीक हो जाएगा. भला वायरस का कभी कुछ इलाज मिला है जो अब मिलेगा?"