एक रात जब चांदनीरात जैसे दूध में नहा कर भीग रही थी और काठगोदाम के कुछ पहाड़ सफेद हो कर दूर से ही चांदी जैसे चमक रहे थे, नीचे रानीबाग की तरफ गौला नदी का शोर संगीत सा लग रहा था. उस ने अपना फोन लिया और मोनिका के नंबर पर लगा दिया. मगर डरकर दोबारा नहीं किया. तो उसी समय मोनिका ने ही फोन कर दिया, पूछने लगी, “ओ बुद्धू सेल्समैन.”
“अ,हां,” उस ने घबरा कर कहा.
“इस समय फ़ोन कैसे किया?”
“बस, यह बताना था कि आज शाम ही चादरों की एक नई गांठ आई है. तुम अपनी किटी की 7-8 सहेलियों के लिए कह रहीं थी न. बिलकुल रोमांटिक छपाई है.”
“कैसी रोमांटिक, यह कैसी छपाई होती है, मैं नहीं समझी?”
“अब यह तो उन को छू कर पता लगेगा.”
“अच्छा, बुद्धू सेल्समैन, जब तुम ने छुआ तो तुम को कैसा लगा, यह तो बताओ?” मोनिका की आवाज में बहुत शरारत थी.
वह दीवाना हुआ जा रहा था. पर अब आगे और कुछ भी बात नहीं करना चाहता था क्योंकि वह जानता था कि मिनटदोमिनट बाद ही सही फोन तो बंद करना ही होगा. उस ने बहाना बना कर अलविदा कहा, फोन बंद कर दिया.
पर वह साफसाफ कल्पना कर पा रहा था कि खुले हुए बाल कभी मोनिका के गालों से तो कभी उस की गरदन पर खेल रहे होंगे. वह वहां होता तो अभी वह गरमागरम… वह फिर अपना ध्यान हटा कर कहीं कुछ और ही सोचने लगा.
सर्कस की अपनी भोजन व्यवस्था थी. वहां सुबह चायपोहा, दोपहर में दालरोटीखिचड़ी, शाम को चायपकौड़े और रात को रस वाले आलू-तेल के परांठे मिलते थे. साथ ही, मालिक उस को एक प्लेट राजमाचावल खाने के पैसे अलग से रोज नकद दिया करता था. पर यहां मोनिका के हाथों के भरवां करेले, आलूशिमलामिर्च, आलूमटरगोभी का स्वाद ही निराला था.
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कुल मिला कर जिंदगी का हर पल यहां चादर की दुकान और टैंट में मोनिका के बगैर एक बहुत बरबाद चीज़ ही साबित हो रही थी. बहुत बोर. रोज़ चादरों की तह करो और उसी तह में तहमद बनते रहो. कहीं कोई रंग नहीं, कोई रस नहीं. मशीनी हाट और मशीनी काम. यह जीना भी कोई जीना था. हां, अब दुनिया में हर कोई अपना एक जीवन तो चुन ही लेता है और बाकी बारहखडी़ भी उसी हिसाब से तय होती जाती है.
एक दिन उस के लिए कितना भावुक करने वाला पल आया था कि जब मोनिका उस से खुद को कुछ सैकंड के लिए अलग कर के शायद कहीं शून्य में खो गई और एक गीत ‘रोजरोज आंखों तले एक ही सपना चले’ बस, इतना सा टूटाफूटा गुनगुना कर वह कुछ देर चुप रही और पलंग के नीचे कच्चे फर्श को ताकने लगी. वहां अपनी आंखों की कलम से ज़मीन पर कुछ चित्र बनाती रही, फिर अचानक बोली, “हां, जो भी हो, उम्मीद तो बना कर रखनी चाहिए. सब खत्म होने तक भी अच्छे होने की उम्मीद करते रहना, कुदरत का फरमान है. देह भले ही कितनी उम्र पार कर चुकी हो, तो भी उम्मीद को जवानी का एहसास छू कर रखना चाहिए, अगर कहीं यह कमजोर देह डगमगा गई और हमारा आत्मबल मुंह के बल गिर पड़े. तो चट संभल जाए. इस तरह जीवन के कंधे पर निराशा का बोझ नहीं पड़ता.”
मोनिका से यह सब सुन कर उस को अचंभा हुआ और फिर वह भी मोनिका के सुर मे सुर मिला कर बोल पड़ा, “हां मोनिका, हरेक पल को स्वीकार करना जरूरी है. स्वीकृति ही तो हर चीज से मुक्त कर देती है. यही रास्ता है. स्वीकृति सहनशीलता से कहीं ज्यादा बेहतर है. लेकिन अगर हम जागरूक नहीं हैं, अगर स्वीकार करना आप के लिए संभव नहीं है और आप हर छोटीछोटी चीज के लिए भी चिड़चिड़ा जाते हैं तो उस से बचने के लिए कम-से-कम कुछ सहनशीलता तो विकसित कर ही लेनी चाहिए. मैं ने आज तक यही माना कि यह जीवन, बस, एक सहनशीलता पर ही टिका है. मैं खुद कितनी छोटी उम्र से कैसे शहरशहर किसी का नौकर बन कर जूझ रहा हूं. मगर मैं हमेशा यही देख पाता हूं कि कोई चीज सुविधाजनक नहीं है, तो उस के बारे में शिकायत करने का क्या लाभ. सब स्वीकार कर लो, यही सब से अच्छा और आरामदायक रास्ता है.”
यह सुन कर मोनिका उस से कैसे लता सी लिपटती गई थी. तब से मोनिका के हर स्पर्श में उस को एक कोमलता लगती. उसे बारबार महसूस होता कि वह एक पोखर है और उस के समूचे उदास पानी में वह एक लहर पैदा कर देती है. वह अब एक ऐसी महत्त्वपूर्ण चीज थी जो परिभाषित तो नहीं हो पा रही थी पर वह कुछ ऐसी तो थी जो उस के मर्म पर और आंतरिक इच्छा पर राज करने लगी थी.
मोनिका के बिना यहां इस सर्कस में इतना टिक पाना उस के लिए तकरीबन असंभव ही होता. मालिक भी तो यही देख रहा था कि वह कब तक यहां रहना सहन करता है. कभीकभी उस को यह लगता कि पूरी दुनिया में, बस, यह एक मोनिका ही तो है जो उस के अकेलेपन को पहचानती है, उस के भीतर घुमड़ रहे उन खामोश बादलों को सुन पाती है जिन्हें केवल उस का उदास बिस्तर सुन पाता है या तकिया और यह वह मोनिका से पहले शायद अपने अकेले में सुनता रहा.
पहले जिन महिलाओं के दामन में वह भीग कर तर हुआ था वे सब इतनी मुलायम नहीं थीं, न दिल के स्तर पर और न ही गुफ्तगू के स्तर पर.
यों आज तक उस ने कभी भी अपने लिए एक मनपसंद जीवन की कामना नहीं की थी, वह लगभग 40 वर्ष का हो चला था. मालिक के पास रह कर काम करतेकरते उस को 20 साल हो गए, पर उस के मन में काम को ले कर कभी खीझ पैदा नहीं हुई. वह रांची से भोपाल, ओडिशा से हैदराबाद, गाजियाबाद से लखीमपुर खीरी कहांकहां नहीं रहा. कोई शहर, गांव या इंसान उस को सब मजा ही मजा मिलता रहा. रहनसहन के मामले में तो वह हमेशा एकजैसे ही रहा- टीशर्ट और जींस. फैशनेबल कपड़ों के मामले में उस के मन का मिजाज कभी भी विचलित नहीं होता. शायद, यही उस का खास अंदाज रहा जो सब, खासकर आजकल मोनिका, को भी मोहित कर जाता है.
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मोहित करना भी तो भ्रम में रखना ही है और सच पूछा जाए तो हर एक इंसान को जी सकने के लिए सांसों के साथ भरपूर भ्रम भी चाहिए, वरना ज़िंदगी उसे सत्य की पहचान करवा कर किस अवसाद में या किस मुसीबत में डाल दे, पता नहीं.
बहुत कम लोग हैं जो उस की तरह अपना सच जान कर भी उस को सम्पूर्ण रूप से किसी भ्रम के परदे से ढक कर जीवन का फ़ायदा उठा कर आनंद के द्वार पर पहुंचते हैं.
वैसे, अधिकांश लोगों में उस की ही तरह ज्यादा होते होंगे. ज़िंदगी की इस रंगीन फिल्म के आकर्षण से अपने मन को रोक पाना इतना आसान तो है भी नहीं. कुत्ते की गरदन में जितना सुंदर पट्टा उस पर उतनी ही नजरें टिकी रहती हैं, पर वह तो कुत्ता नहीं है और न ही किसी तरह से हलका इंसान. वह मोनिका से सच्चा प्यार करता है, बहुत सच्चा.
मोनिका को सुखी रखना उस के अलावा और किसी के वश में है ही नहीं. वह इतने प्यार से उस से जुड़ी है, तो रिश्ता तो उस को भी निभाना ही होगा. हां, यह वफादारी उस को कुछ बेचैन भी करेगी. आगे और भी जवान और मदमाते हुए आकर्षण आएंगे लेकिन मोनिका से गठबंधन उस को एकदम योगी बना देगा. वह अब किसी तरफ नजर ही नहीं डालेगा.
आज उस के पास 20 साल की पक्की नौकरी है. मालिक का इतना स्नेह और दुलार है. अब मोनिका भी उसी की होगी. वह मोनिका को सम्मान से अपनाने में कतई पीछे नहीं हटेगा. जब कुदरत आगे बढ़ कर उस को इतनी मखमली डोरी से बांध रही है तो वह इस संकेत का अपमान भला कैसे कर सकता है. यह सोच कर ही उस को मीठीमीठी गुदगुदी सी होने लगी.
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