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रात को अचानक अमोल की आंख खुली तो देखा, बराबर में लेटी अमृता का शरीर हलकेहलके हिल रहा है. कहीं वह रो तो नहीं रही, यह विचार आते ही वह उठ बैठा. उस ने कमरे में हलकी सी बाहर से आती रोशनी में गौर से अमृता का चेहरा देखा तो अमृता ने भी आहट से आंखें खोल दीं साइड लैंप का स्विच औन किया. वह रो रही थी. अमोल ने उसे बांहों में भर लिया. पूछा, ‘‘क्या हुआ?’’

अमृता और जोर से सिसक पड़ी. ऐसा होता है न, जब मन किसी दुख में जल रहा हो, कोई शीतल सा स्पर्श पाते ही मन भरभरा पड़ता है, स्नेहिल स्पर्श से और बिखरबखर जाता है.

अमोल ने उस के बाल सहलाए, ‘‘अब तो चिंता के दिन गए, अमृता. हमारी परेशानी खत्म होने वाली है, जल्दी ही घर में नन्हा मेहमान आने वाला है. अब तो उस के वैलकम की तैयारी करो.’’

अमृता उठ कर बैठ गई. भरे गले से बोली, ‘‘काश, मेरी हिस्टेरेक्टोमी न हुई होती, यूटरस न निकाला गया होता, मैं अपने बच्चे की मां खुद बनती तो कितना अच्छा होता. यह सरोगेसी के चक्कर में पड़ना ही न पड़ता.’’

‘‘तुम्हें तो इस बात पर खुश होना चाहिए कि आज इस तकनीक से हमारे घर में भी रौनक होगी. घर वाले भी यह मान गए हैं, किसी ने कोई आपत्ति नहीं की. अब सो जाओ, कल डाक्टर छवि के पास भी जाना है. चिंता मत करो, सब ठीक होगा.’’

अमोल ने उसे तो सोने के लिए कह दिया पर उस की आंखों से भी नींद गायब हो चुकी थी. कुछ अजीब तो लग रहा था. पता नहीं कौन औरत उस के बच्चे को अपनी कोख में रखेगी, कैसे संस्कार होंगे, धर्मकर्म वाली होगी भी या नहीं, यह सब तो पता नहीं चलने वाला था. उस की बस एक ही चिंता थी कि वह औरत उन्हीं के जैसी हो. अब वह 40 का हो चुका था, अमृता 38 की. अब तो अमृता की बीमारी के बाद यह स्पष्ट हो चुका था कि जब यूटरस ही नहीं रहा तो बच्चा कहां से आता. बहुत विचारविमर्श के बाद डाक्टर छवि से सैरोगेट मदर के माध्यम से बच्चा पैदा करने की बात की थी.

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