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नीरा को प्रकृति से अत्यंत प्रेम था. यही कारण था कि जब दीपेश ने मकान बनाने का निर्णय लिया तो उस ने साफ शब्दों में कह दिया कि वह फ्लैट नहीं, अपना स्वतंत्र घर चाहती है जिसे वह अपनी इच्छानुसार, वास्तुशास्त्र के नियमों के मुताबिक, बनवा सके. उस में छोटा सा बगीचा हो, तरहतरह के फूल हों. यदि संभव हो तो फल और सब्जियां भी लगाई जा सकें.

यद्यपि दीपेश को वास्तुशास्त्र में विश्वास नहीं था किंतु नीरा का वास्तुशास्त्र में घोर विश्वास था. उस का कहना था कि यदि इस में कोई सचाई न होती तो क्यों बड़ेबड़े लोग अपने घर और दफ्तर को बनवाने में वास्तुशास्त्र के नियमों का पालन करते या कमी होने पर अच्छेभले घर में तोड़फोड़ कराते.

अपने कथन की सत्यता सिद्ध करने के लिए नीरा ने विभिन्न अखबारों की कतरनें ला कर उस के सामने रख दी थीं तथा इसी के साथ वास्तुशास्त्र पर लिखी एक पुस्तक को पढ़ कर सुनाने लगी. उस में लिखा था कि भारत में स्थित तिरुपति बालाजी का मंदिर शतप्रतिशत वास्तुशास्त्र के नियमों का पालन करते हुए बनाया गया है. तभी उसे इतनी प्रसिद्धि मिली है तथा चढ़ावे के द्वारा वहां जितनी आय होती है उतनी शायद किसी अन्य मंदिर में नहीं होती.

हमारा संपूर्ण ब्रह्मांड पंचतत्त्वों से बना है. जल, वायु, पृथ्वी, अग्नि तथा आकाश के द्वारा हमारा शरीर कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन तथा चरबी जैसे आंतरिक शक्तिवर्धक तत्त्व तथा गरमी, प्रकाश, वायु तथा ध्वनि द्वारा बाहरी शक्ति प्राप्त करता है परंतु जब इन तत्त्वों की समरसता बाधायुक्त हो जाए तो हमारी शक्तियां क्षीण हो जाती हैं. मन की शांति भंग होने के कारण खिंचाव, तनाव तथा अस्वस्थता बढ़ जाती है. तब हमें अपनी आंतरिक और बाहरी शक्तियों को एकाग्र हो कर निर्देशित करना पड़ता है ताकि इन में संतुलन स्थापित हो कर शरीर में स्वस्थता तथा प्रसन्नता और सफलता प्राप्त हो. इन 5 तत्त्वों का संतुलन ही वास्तुशास्त्र है.

दीपेश ने देखा कि नीरा एक पैराग्राफ कहीं से पढ़ रही थी तथा दूसरा कहीं से. जगहजगह उस ने निशान लगा रखे थे. वह आगे और पढ़ना चाह रही थी कि उन्होंने यह कह कर उसे रोक दिया कि घर तुम्हारा है, जैसे चाहे बनवाओ. लेकिन खुद घर बनवाने में काफी परिश्रम एवं धन की जरूरत होगी जबकि उतना ही बड़ा फ्लैट किसी अच्छी कालोनी में उतने ही पैसों में मिल जाएगा.

‘आप श्रम की चिंता मत करो. वह सब मैं कर लूंगी. हां, धन का प्रबंध अवश्य आप को करना है. वैसे, मैं बजट के अंदर ही काम पूरा कराने का प्रयत्न करूंगी, फिर यह भी कोई जरूरी नहीं है कि एकसाथ ही पूरा काम हो, बाद में भी सुविधानुसार दूसरे काम करवाए जा सकते हैं. अब आप ही बताओ, भला फ्लैट में इन सब नियमों का पालन कैसे हो सकता है. सो, मैं छोटा ही सही, लेकिन स्वतंत्र मकान चाहती हूं,’ दीपेश की सहमति पा कर वह गद्गद स्वर में कह उठी थी.

दीपेश ने नीरा की इच्छानुसार प्लौट खरीदा तथा मुहूर्त देख कर मकान बनाने का काम शुरू करवा दिया. मकान का डिजाइन नीरा ने वास्तुशास्त्र के नियमों का पालन करते हुए अपनी वास्तुकार मित्र से बनवाया था. प्लौट छोटा था, इसलिए सब की जरूरतों को ध्यान में रखते हुए डुप्लैक्स मकान का निर्माण करवाने की योजना थी. निरीक्षण के लिए उस के साथ कभीकभी दीपेश भी आ जाते थे.

तभी एक दिन सूर्य को डूबते देख कर नीरा भावविभोर हो कर कह उठी थी, ‘लोग तो सूर्यास्त देखने पता नहीं कहांकहां जाते हैं. देखो, कितना मनोहारी दृश्य है. हम यहां एक बरामदा अवश्य निकलवाएंगे जिस से चाय की चुस्कियों के साथ प्रकृति के इस मनोहारी स्वरूप का भी आनंद ले सकें.’

उस समय दीपेश को भी नीरा का स्वतंत्र बंगले का सु झाव अच्छा लगा था.नीरा की सालभर की मेहनत के बाद जब मकान बन कर तैयार हुआ तब सब बेहद खुश थे, खासतौर से, नितिन और रीना. उन को अलगअलग कमरे मिल रहे थे. कहां पर अपना पलंग रखेंगे, कहां उन की पढ़ने की मेज रखी जाएगी, सामान शिफ्ट करने से पहले ही उन की योजना बन गई थी.

अलग से पूजाघर,  दक्षिणपूर्व की ओर रसोईघर तथा अपना बैडरूम दक्षिण दिशा में बनवाया था क्योंकि उस के अनुसार पूर्व दिशा की ओर मुंह कर के पूजा करने में मन को शांति मिलती है. वहीं, उस ओर मुंह कर के खाना बनाने से रसोई में स्वाद बढ़ता है तथा दक्षिण दिशा घर के मालिक के लिए उपयुक्त है क्योंकि इस में रहने वाले का पूरे घर में वर्चस्व रहता है. एक बार फिर मुहूर्त देख कर गृहप्रवेश कर लिया गया था.

सब अतिथियों के विदा होने के बाद रात्रि को सोने से पहले दीपेश ने नीरा का हाथ अपने हाथ में लेते हुए कहा था, ‘आज मैं बहुत खुश हूं. तुम्हारी अथक मेहनत के कारण हमारा अपने घर का सपना साकार हो पाया है.’

‘अभी तो सिर्फ ईंटगारे से निर्मित घर ही बना है. अभी मु झे इसे वास्तव में घर बनाना है जिसे देख कर मैं गर्व से कह सकूं, ‘सुंदर मा झे घर,’ मेरा सुंदर घर. जहां प्यार, विश्वास और अपनत्व की सरिता बहती हो, जहां घर का प्रत्येक प्राणी सिर्फ रात बिताने या खाना खाने न आए बल्कि प्यार के अटूट बंधन में बंधा वह शीघ्र काम समाप्त कर के इस घर की छत की छाया के नीचे अपनों के बीच बैठ कर सुकून के पल ढूंढ़े,’ नीरा ने उस की ओर प्यारभरी नजरों से देखते हुए कहा था.

नीरा ने ईंटगारे की बनी उस इमारत को सचमुच घर में बदल दिया. उस के हाथ की बनाई पेंटिंग्स ने घर में उचित स्थानों पर जगह ले ली थी. दीवार के रंग से मेल खाते परदे, वौल हैंगिंग्स, लैंप आदि न केवल घर की मालकिन की रुचि का परिचय दे रहे थे, घर की शोभा को दोगुना भी कर रहे थे.

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