‘तनाव’ तो टैंशन देता है और टैंशन भारत में फैलफैल कर, ले ले कर, झेलझेल कर हिंदी का शब्द बन गया है. कौमन मैन भी टैंशन शब्द का प्रयोग प्यार से करता है. यह रोजमर्रा का ऐसा कार्य बन गया है जैसे ‘दातुन करना.’ हमें एक दिन एक ऐडवोकेट मिले, बोले, ‘‘हम बचपन से इतने टैंशन में रहे हैं, खेले हैं, झेले हैं कि अब यदि हम 15 मिनट खुल कर हंस लें तो शायद बीमार हो जाएं या हार्ट का झटका पड़ जाए.’’
उन्हें यदि प्रतिदिन टैंशन न हो तो वे बेचैन हो जाते हैं.
दरअसल, टैंशन एक मजा है, सजा नहीं. जाने कितने लोग इसी से जीवन चला रहे हैं, जी रहे हैं, दूसरों को जिला रहे हैं. यह तनाव मानवजीवन का वैसा ही अभिन्न अंग है या विशिष्ट गुण है, जैसा ‘हंसी’ या ‘सोचना’. इस के मजे के बिना जीवन ही दूभर हो जाए. इसलिए इसे प्रात: स्मरणीय मान कर स्वागत करना चाहिए, नमन करना चाहिए, मुंह नहीं सिकोड़ना चाहिए. यह अलग बात है कि किसी ने पूछा, ‘‘क्यों बिजूके जैसा मुंह बनाए हो?’’ तो जवाब मिला, ‘‘हमारा चेहरा ही ऐसा है.’’
हर कोई टैंशन, दया, प्रेम, करुणा जैसे भाव ग्रहण करता, कराता घूम रहा है.
टैंशन की आदत घरघर में, घर के हर कमरे के बच्चे, बूढ़े, जवान, प्रौढ सभी नरनारी में पूर्णरूप से विकसित हो चुकी है. यदि यह कहें कि यह काल टैंशन का स्वर्णिम काल है तो अतिशयोक्ति नहीं होगी. आप मजाक में ले रहे हों तो खुल कर वार्त्ता करते हैं. घर के बूढ़े सुबहसुबह घर के लोगों के देर से सो कर उठने पर टोक कर, चिल्ला कर टैंशन का मजा लेते हैं या बच्चों ने ब्रश नहीं किया तो तनाव ले लेते हैं. बहू ने चायनाश्ते में देर लगाई तो तनाव ले लिया. वे घड़ी, जूतेचप्पल या तांबे के लोटे में पानी न मिलने पर तनाव ले लेते हैं. वे तनाव का स्वयं ही मजा नहीं लेते, बल्कि दूसरों को भी प्रसादस्वरूप बांट देते हैं. अब सामने वाले