मेरी बात से आप भले ही सहमत हों या न हों, पर इस बात से तो सौ फीसदी सहमत होंगे कि पहली श्रेणी के दोस्तों का मिलना आज की तारीख में वैसे ही कठिन है जैसे आप शताब्दी की करंट बुकिंग के लिए 5 बजे भी सीट मिलने की उम्मीद में बदहवास दौड़ते रहते हैं, जबकि ट्रेन छूटने का वक्त सवा 5 बजे का है.

पर हां, दूसरे दर्जे के दोस्त जरूर मिल जाते हैं. ये कुछ ऐसेवैसे दोस्त होते हैं जो अच्छा न करें तो बुरा भी नहीं करते. जब इन के दिमाग में बुरा करने का खयाल आए तो ये उस जैसे दोस्त को फटकारते दिमाग से बाहर कर ही देते हैं. इन दूसरे दर्जे के दोस्तों की सब से बड़ी खासीयत यही होती है कि ये कम से कम अच्छा न कर सकें तो बुरा भी नहीं करते. जो उन्हें लगे कि दोस्त का कुछ बुरा करने के लिए उन का मन ललचा रहा है तो वे मन के ललचाने के बाद भी जैसेतैसे अपने बेकाबू मन पर काबू पा ही लेते हैं.

पर ये तीसरे दर्जे के दोस्त जब तक दोस्त को नीचा न दिखा लें, तब तक इन को चैन नहीं मिलता.

वैसे तो मेरे आप की तरह कहने को बहुत से दोस्त हैं, पर मेरे परम आदरणीय भाईसाहब रामजी लाल मेरे खास दोस्त हैं. बेकायदे से भी जो उन का दर्जा तय करूं तो वे मेरे तीसरे दर्जे के दोस्त हैं. हैं तो वे इस से भी नीचे के दोस्त, पर इस से नीचे जो मैं उन का दर्जा निर्धारित करूं तो यह मुझ पर सितम और उन पर करम करने जैसा होगा.

अगर मैं तीसरे दर्जे में यात्रा न भी करना चाहूं तो भी वे असूहलियतों का पूरा ध्यान रख मेरी तीसरे दर्जे की यात्रा का टिकट हवा में लहराते आगे नाचने का हर मौका तलाशते रहेंगे और मौका मिलते ही मु?ो फुटपाथ पर बैठा कर हवा हो लेंगे. सच कहूं तो हैं तो वे मेरे दोस्त, पर जो सुबहसुबह वे दिख जाएं तो सारा दिन मन यों रहता है कि मानो मन में नीम घुल गया हो.

मेरे इन परम आदरणीय मित्रों में नीचता इस कदर कूटकूट कर भरी है कि वे अपने कद को ऊंचा दिखाने के चक्कर में अपने बाप तक को भी नीचा दिखाने से न चूकें, उन के अहंकार को देख मैं ऐसा मानता हूं. अपने को बनाए रखने के लिए वे बाप की पगड़ी से भी हंसते हुए जाएं. उन का बस चले तो मोमबत्ती को हाथ में ले कर सूरज के आगे चौड़े हो अड़ जाएं.

असल में इस दर्जे के दोस्तों में हीनता का बोध इस कदर भरा होता है कि ये बेचारे अपने थूक को ऊंचाई देने के लिए चांद पर भी थूकने से गुरेज नहीं करते. इन के लिए हर जगह अपना कद महत्त्वपूर्ण होता है, मूल्य नहीं. वे भालू और 2 दोस्तों की कहानी से आगे के चरित्र होते हैं.

इस श्रेणी के दोस्त बहुधा जिस थाली में खाते हैं या तो खाने के बाद उस थाली को ही उठा कर साथ ले जाते हैं या फिर… जिस थाली में खाते हैं उसी में छेद करने वाली कहावत इन के लिए आउटडेटेड होती है. इसलिए ऐसे भाईसाहब अपना कद ऊंचा करने के लिए अपने नीचे औरों के नीचे की सीढ़ी सरकाने से तो परहेज करते ही नहीं, मौका मिलते ही किसी के भी कंधे पर छलांग मार बैठने के बाद उस के सिर के सफेद बाल तक नोचने से परहेज नहीं करते.

पर मैं फिर भी हर बार ऐसों को चांस दे देता रहता हूं, उन्हें अपने कंधे पर बैठा अपने सिर के सफेद बाल नुचवाने का, पता नहीं क्यों? हर बार अपने तीसरे दर्जे के दोस्तों की बदतमीजी को भुनाने का नैसर्गिक अवगुण मु?ा में पता नहीं क्यों है, जबकि मैं यह भी जानता हूं कि आदमी सबकुछ बदल सकता है पर दोस्ती के संदर्भ में अपनी औकात नहीं.

इन्हें देख कर कई बार तो लगता है कि इन में जरूर कोई हीनता इतनी गहरे तक है कि मैं इसे निकालने में हर बार असमर्थ हो जाता हूं. अपनी इस असफलता पर हे मेरे तीसरे दर्जे के दोस्तो, मैं तुम से दोनों हाथ जोड़ क्षमा मांगता हूं.

इन की एक विशेषता यह भी होती है कि पहले तो ये आप के सामने गर्व से मिमियाते हैं और फिर मौका पा कर आप के बाप बन बैठते हैं. इन को अपने दोस्तों का अपमान करने में वह आनंद मिलता है जैसा बड़ेबड़े तपस्वियों को मनवांछित फल पाने के बाद भी क्या ही मिलता होगा.

तीसरे दर्जे के इन सम्मानियों को हम आस्तीन का वह सांप कह सकते हैं, जिसे हम पता नहीं क्यों संवेदनशील हो कर अपनी आस्तीन में लिए फिरते रहते हैं. ये ऐसे होते हैं कि दांव मिलते ही हमारी कमर में डंक मार हमारे शुभचिंतक होने के परम धर्म को पूरी ईमानदारी से निभाते हैं.

पहली श्रेणी के दोस्तों के साथ सब से बड़ी तंगी यह होती है कि ये दोस्ती का दिखावा कभी नहीं करते. आप को इन्हें सहायता करने को कहने की भी जरूरत नहीं होती. ये अपनेआप ही आप को परेशानी में देख आप की सहायता करने चले आएंगे, मुंह का कौर मुंह में और थाली का कौर थाली में छोड़.

लेकिन ये जो आप के तीसरे दर्जे के दोस्त होते हैं न, इन के बारे में आप तो क्या, तथाकथित भगवान तक कोई भी सटीक तो छोडि़ए भविष्यवाणी तक नहीं कर सकते. इन्हें बस, पता चलना चाहिए कि दोस्त कहीं दिक्कत में है. फिर देखिए इन का प्यार कि ये किस तरह गले लगाते हैं. किस तरह अपने जूते तक खोल बरसाते हैं. भले ही बाद में उन के पांव में कांटे चुभ जाएं.

असल में, ये उस लैवल के दोस्त होते हैं जो किसी भी कद के सामने अपने को उस से ऊंचा दिखाने का कोई भी मौका हाथ से नहीं जाने देते. इन्हें अपने अहंकारी कद के आगे हिमालय तक चींटी दिखे तो मोक्ष प्राप्त हो.

इन्हें दोस्ती की नहीं, अपने कद की चिंता होती है. ये किसी के साथ दोस्ती तब तक ही रखते हैं जब तक इन के अहम के कद पर कोई आंच न आए. जैसे ही इन्हें लगता है कि इन के सामने इन से कद्दावर आ गया है तो ये सबकुछ हाशिए पर डाल सड़े दिमाग से आरी निकाल उस के कद को तहसनहस करने में पूरी शिद्दत से जुट जाते हैं.

पहली श्रेणी और इस तीसरे दर्जे के दोस्त में बेसिक अंतर यह होता है कि पहली श्रेणी का दोस्त आप के कद के साथ ईमानदारी से अपने कद को बढ़ाने की कोशिश करता है जबकि तीसरे दर्जे के दोस्त इस फिराक में रहते हैं कि कब व कैसे आप के कद को गिरा तथाकथित मित्रता के धर्म को निभा कृतार्थ हों.

जब तक इस दर्जे के मित्र किसी को किसी रोज नीचा नहीं दिखा लेते, इन को खाना हजम नहीं होता. इसलिए मेरी आप से दोनों हाथ जोड़ विनती है कि अपने इन तीसरे दर्जे के मित्रों के पेट का खयाल मेरी तरह आप भी रखिए. अपने लिए न सही तो न सही, पर इन की जिंदगी के लिए यह बेहद जरूरी है. इन के झूठे, लिजलिजे अहं की हर हाल में रक्षा कीजिए. भले ही आप की इज्जत का फलूदा बन जाए, तो बन जाए.

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