आज 8 नवंबर, 2017 है. मुग्धा औफिस नहीं गई. मन नहीं हुआ. बस, यों ही. अपने फ्लैट की बालकनी से बाहर देखते हुए एक जनसैलाब सा दिखता है मुग्धा को. पर उस के मन में तो एक स्थायी सा अकेलापन बस गया है जिसे मुंबई की दिनभर की चहलपहल, रोशनीभरी रातें भी खत्म नहीं कर पातीं. कहने के लिए तो मुंबई रोमांच, ग्लैमर, फैशन, हमेशा शान वाली जगह समझी जाती है पर मुग्धा को यहां बहुत अकेलापन महसूस होता है.
जनवरी में मुग्धा लखनऊ से यहां मुंबई नई नौकरी पर आई थी. यह वन बैडरूम फ्लैट उसे औफिस की तरफ से ही मिला है. आने के समय वह इस नई दुनिया में अपनी जगह बनाने के लिए, जीवन फिर से जीने के लिए जितनी उत्साहित थी, अब उतनी ही स्वयं को अकेला महसूस करने लगी है. बिल्ंिडग में किसी को किसी से लेनादेना है नहीं. अपने फ्लोर पर बाकी 3 फ्लैट्स के निवासी उसे लिफ्ट में ही आतेजाते दिखते हैं. किसी ने कभी पूछा ही नहीं कि नई हो? अकेली हो? कोई जरूरत तो नहीं? मुग्धा ने फिर स्वयं को अलमारी पर बने शीशे में देखा.
वह 40 साल की है, पर लगती नहीं है, वह यह जानती है. वह सुंदर, स्मार्ट, उच्च पद पर आसीन है. पिछली 8 नवंबर का सच सामने आने पर, सबकुछ भूलने के लिए उस ने यह जौब जौइन किया है. मुग्धा को लगा, उसे आज औफिस चले ही जाना चाहिए था. क्या करेगी पूरा दिन घर पर रह कर, औफिस में काम में सब भूली रहती, अच्छा होता.