फाल्गुन अपने रंग धरती पर बिखेरता हुआ, चपलता से गुलाल से गालों को आरक्त करता हुआ, चंचलता से पानी की फुहारों से लोगों के दिलों और उमंगों को भिगोता हुआ चला गया. सेमल के लालनारंगी फूलों से लदे पेड़ और अलगअलग रंगों में यहांवहां से झांकते बोगेनवेलिया के झाड़, हर ओर मानो रंग ही रंग बिखरे हुए थे.

फाल्गुन जातेजाते गरमियों के आने का संकेत भी कर गया. हालांकि उस समय भी धूप के तीखेपन में कोई कमी नहीं थी, पर सुबहशाम तो प्लेजेंट ही रहते थे, लेकिन जातेजाते वह अपने साथ रंगों की मस्ती तो ले ही गया, साथ ही मौसम की गुनगुनाहट भी.

‘‘उफ, यह गरमी, आई सिंपली हेट इट,’’ माथे पर आए पसीने को दुपट्टे से पोंछते हुए इला ने अपने गौगल्स आंखों पर सटा दिए, ‘‘लगता है हर समय या तो छतरी ले कर निकलना होगा या फिर एसी कार में जाना पड़ेगा,’’ कहतेकहते वह खुद ही हंस पड़ी.

‘‘तो मैडम, यह काम क्या इस बंदे को करना होगा कि रोज सुबह आप के घर से निकलने से पहले फोन कर के आप को छतरी रखने के लिए याद दिलाए या फिर खुद ही छतरी ले कर आप की सेवा में हाजिर होना पड़ेगा,’’ व्योम चलतेचलते ठहर गया था.

उस की बात सुन इला को भी हंसी आ गई.

‘‘ज्यादा स्टाइल मारने के बजाय कुछ ठंडा पिला दो तो बेहतर होगा.’’

‘‘क्या लोगी? कोल्ड कौफी या कोल्ड ड्रिंक?’’

‘‘कोल्ड कौफी मिल जाए तो मजा आ जाए,’’ इला चहकी.

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‘‘आजकल पहले जैसा तो रहा नहीं कि कोल्ड कौफी कुछ सलैक्टेड आउटलेट्स पर ही मिले. अब तो किसी भी फूड कोर्ट में मिल जाती है. यहीं किसी फूड कोर्ट में बैठते हैं,’’ व्योम बोला.

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