‘‘सांसों की जरूरत है जैसे जिंदगी के लिए, बस एक सनम चाहिए आशिकी के लिए...’’ एफएम पर बजते ‘आशिकी’ फिल्म के इस गाने ने मुझे बरबस ही तनु की याद दिला दी.
वह जब भी किसी नए रिश्ते में पड़ती थी, तो यह गाना गुनगुनाती थी.मनचली... तितली... फुलझड़ी... और भी न जाने किनकिन नामों से बुलाया करते थे लोग उसे...मगर वह तो जैसे चिकना घड़ा थी. किसी भी कमैंट का कोई असर नहीं पड़ता था उस पर. अपनी शर्तों पर, अपने मनमुताबिक जीने वाली तनु लोगों को रहस्यमयी लगती थी. मगर मैं जानती थी कि वह एक खुली किताब की तरह है. बस उसे पढ़ने और समझने के लिए थोड़े धीरज की जरूरत है.
वह कहते हैं न कि अच्छे दोस्त और अच्छी किताबें जरा देर से समझ में आते हैं...तनु के बारे में भी यही कहा जा सकता है कि वह जरा देर से समझ आती है.
तनु मेरी बचपन की सहेली थी. स्कूल से ले कर कालेज और उस के बाद उस के जौब करने तक... मैं उस के हर राज की हमराज थी. पता नहीं कितनी चाहतें, कितने अरमान भरे थे उस के दिल के छोटे से आसमान में कि हर बार अपनी ही उड़ान से ऊपर उड़ने की ख्वाहिशें पलती रहती थीं उस के भीतर. वह जिस मुकाम को हासिल कर लेती थी वह तुच्छ हो जाता था उस के लिए. कभीकभी तो मैं भी नहीं समझ पाती थी कि आखिर यह लड़की क्या पाना चाहती है. इस की मंजिल आखिर कहां है?
8वीं क्लास में जब पहली बार उस ने मुझे बताया कि उसे हमारे क्लासमेट रवि से प्यार हो गया है तो मेरी समझ ही नहीं आया था कि मैं कैसे रिएक्ट करूं. तनु ने बताया कि रवि के साथ बातें करना, खेलना, मस्ती करना उसे बहुत भाता है. तब तो हम शायद प्यार के माने भी ठीक ढंग से नहीं जानते थे. फिर भी न जाने किस तलाश में वह पागल लड़की उस अनजान रास्ते पर आगे बढ़ती ही जा रही थी.
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