विधि के गुरुजी को देख कर धक्का सा लगा. जरा भी तो नहीं बदला था विजय. बस, पहले अमीरी का रोब नहीं था. अब वह तो है ही. हम जैसे मूर्ख भक्त भी हैं.
‘‘देखो, तुम्हारी ही उम्र के होंगे पर किसी भी समस्या का सिद्धि के बल पर चुटकियों में निदान ढूंढ़ लेते हैं,’’ विधि मेरे कानों में फुसफुसाई.
अब तक मैं ‘गुरुजी’ के किसी भी काम में दिलचस्पी नहीं दिखा रहा था, पर गुरुजी को देखने के बाद तो जैसे मैं उतावला ही हो गया था.
‘‘देखा, गुरुजी के दर्शन मात्र से मन का मैल दूर हो गया,’’ विधि ने विजयी भाव से मम्मी की तरफ देखा.मम्मी जो विधि की हर बात काटती थीं,
भी संतुष्टि से गरदन हिला कर मुसकराईं, ‘‘बेटी, मुझे पहले ही पता था कि बस गुरुजी के घर आने की देरी है. सब मंगलमय हो जाएगा.’’
मेरी तरफ से किसी तरह की कोई समस्या उत्पन्न नहीं होगी, यह दोनों को अच्छी तरह समझ में आ गया था. मुझ से छिपा कर गुरुजी के लिए उपहार और स्वागत के लिए पकवान इत्यादि बाहर आने लगे.
विजय मेरे रघु भैया की क्लास में था. हम दोनों भाई शहर में एक कमरा ले कर पढ़ा करते थे. कालेज के पास ही कमरा लिया था, तो कुछ यारदोस्त आ ही जाते थे.
ये भी पढ़ें- खोखली होती जड़ें: किस चीज ने सत्यम को आसमान पर चढ़ा दिया
मगर विजय से हम दोनों भाई परेशान हो गए थे. उस के पिताजी कालेज के गेट पर उसे छोड़ते तो सीधा हमारे कमरे पर आ जाता. हम दोनों भाई क्लास से वापस आते तो वह सोया होता.
आगे की कहानी पढ़ने के लिए सब्सक्राइब करें
डिजिटल
गृहशोभा सब्सक्रिप्शन से जुड़ेें और पाएं
- गृहशोभा मैगजीन का सारा कंटेंट
- 2000+ फूड रेसिपीज
- 6000+ कहानियां
- 2000+ ब्यूटी, फैशन टिप्स
डिजिटल + 24 प्रिंट मैगजीन
गृहशोभा सब्सक्रिप्शन से जुड़ेें और पाएं
- गृहशोभा मैगजीन का सारा कंटेंट
- 2000+ फूड रेसिपीज
- 6000+ कहानियां
- 2000+ ब्यूटी, फैशन टिप्स
- 24 प्रिंट मैगजीन