यह कोई नई बात नहीं थी. सांवरी कोशिश करती कि ऐसी स्थिति में वह सामान्य रहे, लेकिन फिर भी उस का मन व्यथित हो रहा था. किचन में से भाभी की नफरत भरी बातें उसे सुनाई दे रही थीं, जो रहरह कर उसे कांटे की तरह चुभ रही थीं. किचन से बाहर निकल कर जलती हुई दृष्टि से सांवरी को देखते हुए भाभी बोलीं, ‘‘जाइए, जा कर तैयार हो जाइए महारानीजी, जो तमाशा हमेशा होता आया है, आज भी होगा. लड़के वाले आएंगे, खूब खाएंगेपीएंगे और फिर आप का यह कोयले जैसा काला रूप देख कर मुंह बिचका कर चले जाएंगे.’’ भाभी की कटाक्ष भरी बातें सुन कर सांवरी की आंखें डबडबा आईं. वह भारी मन से उठी और बिना कुछ कहे चल दी अपने कमरे में तैयार होने. भाभी का बड़बड़ाना जारी था, ‘‘पता नहीं क्यों मांबाबूजी को इन मैडम की शादी की इतनी चिंता हो रही है? कोई लड़का पसंद करेगा तब तो शादी होगी न. बीसियों लड़के नापसंद कर चुके हैं.
‘‘अरे, जब इन की किस्मत में शादी होना लिखा होता तो कुदरत इन्हें इतना बदसूरत क्यों बनाती? सोनम भी 23 साल की हो गई है. सांवरी की शादी कहीं नहीं तय हो रही है तो उस की ही शादी कर देनी चाहिए. उसे तो लड़के वाले देखते ही पसंद कर लेते हैं.’’ मां ने अपनी विवशता जाहिर की, ‘‘ऐसे कैसे हो सकता है, बहू. बड़ी बेटी कुंआरी घर में बैठी रहे और हम छोटी बेटी की शादी कर दें.’’
भाभी आंखें तरेर कर बोलीं, ‘‘आप को क्या लगता है मांजी, आज लड़के वाले सांवरी को पसंद कर लेंगे? ऐसा कुछ नहीं होने वाला है. सांवरी की वजह से सोनम को घर में बैठा कर बालों में सफेदी आने का इंतजार मत कीजिए. मेरी मानिए तो सोनम की शादी करा दीजिए.’’ सांवरी अपनी मां जैसी ही सांवली थी. सांवले रंग के कारण मां ने उस का नाम सांवरी रखा था. मांबाप, भाईबहन को छोड़ कर सांवरी औरों को काली नजर आती थी. उस के पैदा होने पर दादी सिर पकड़ कर बोली थीं, ‘‘अरे यह काली छिपकली घर में कहां से आ गई? कैसे बेड़ा पार होगा इस का?’’