विनय शरीर से दुबलापतला था. मगर उसे देख कर कोई नहीं कह सकता था कि वह भीतर से बहुत मजबूत है. कराटे सीखने के इरादे ने ही उसे भीतर से भी काफी मजबूत बना दिया था. मन और बुद्धि का भी वह धनी था. ‘‘सर,’’ कमरे में प्रवेश कर विनय राजन सर से बोला.

‘‘कहो, कौन हो तुम? क्या चाहते हो,’’ राजन सर ने पूछा. प्रश्नों की इस बौछार से जरा भी विचलित हुए बिना विनय बोला, ‘‘सर, मैं कराटे सीखना चाहता हूं.’’

‘‘क्या कहा, कराटे? यह शरीर ले कर तुम कराटे सीखना चाहते हो,’’ राजन सर मजाकिया मूड में हंस कर बोले. ‘‘हां, सर. क्या मैं कराटे नहीं सीख सकता?’’ विनय ने पूछा.

‘‘नहीं, पहले खापी कर अपने शरीर को मजबूत बनाओ, तब आना. अभी तो एक बच्चा भी तुम्हें गिरा सकता है,’’ कह कर राजन सर अखबार पढ़ने लगे. ‘‘सर, मैं इतना कमजोर भी नहीं हूं,’’ विनय बोला.

‘‘कैसे मान लूं?’’ यह सुनते ही विनय ने अपने एक हाथ की मुट्ठी बांध ली और फिर बोला, ‘‘सर, मेरी इस मुट्ठी को खोलिए.’’

सुन कर राजन सर मुसकराए मगर कुछ ही देर में उन की मुसकराहट गायब हो गई. विनय की मुट्ठी खोलने में उन के पसीने छूटने लगे. तब कुछ ही क्षणों बाद विनय ने खुद ही अपनी मुट्ठी खोल ली. राजन सर के मुंह से केवल इतना ही निकला, ‘‘वंडरफुल, तुम कल से टे्रनिंग सैंटर पर आ सकते हो लेकिन इस ढीलीढाली धोती में नहीं. अच्छा होगा कि तुम पाजामा पहन कर आओ.’’

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