इस समय देश का हर नागरिक संवैधानिक हो गया है. अवैधानिक काम करने वाला भी बातबात में संविधान की बात कर रहा है. एक कहता है कि भारतमाता की जय बोलना संविधान में कहां लिखा है, तो दूसरा कहता है कि कहां लिखा है कि नहीं बोल सकते.
अब छोटीछोटी बात में भी लोग संविधान की आड़ ले रहे हैं. हमारा एक दोस्त मैसेजेस का जवाब नहीं देता था. एक दिन हम ने मैसेज किया कि भाई, थोड़ा सा सोशल हो जा सोशल मीडिया में, तो उस का मैसेज आ गया कि कहां लिखा है संविधान में कि हर मैसेज का जवाब देना आवश्यक है. मैं ने कहा कि यार, तूने तो मिलियन डौलर का प्रश्न खड़ा कर दिया. तू सही कह रहा है कि नहीं, यह मैं कैसे सही या गलत ठहराऊं.
अब यह संविधान की आड़ लेने वाली बात छूत के रोग की तरह हर तरफ फैलती जा रही है. उस दिन मैं सब्जी बाजार में था. मैं ने मोलभाव करना चाहा, तो सब्जी वाला बोला, ‘साहब पढ़ेलिखे हो कर भी एक दाम की तख्ती आप ने नहीं पढ़ी. संविधान में मोलभाव करने का उल्लेख नहीं है. कहां लिखा है, यदि लिखा हो तो हमें बताएं.’ मैं बहुत देर तक उस का थोबड़ा देखता रहा कि अब तो सब्जी मंडी में भी सब्जी वाला सब्जीभाजी की कम, संविधान की ज्यादा जानकारी रखने लगा है.
संविधान गलीकूचेबाजार से होते हुए घर के किचन में कब घर कर गया, हमें वैसे ही भान ही नहीं हुआ जैसे दिल्ली में भाजपाकांग्रेस का सफाया होने का नहीं हुआ था. पिछले रविवार को मैं ने पत्नी के सामने इच्छा प्रकट की कि आज रविवार है, कुछ खास डिश हो जाए? तो उस ने आंखें तरेर लीं कि पत्नी रविवार को पति के लिए खास डिश तैयार करेगी, यह संविधान में कहां लिखा है.
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