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तनहा रूपेश क्या करे? कौन उस का सहारा बन सकता है? क्या रमला खुद...

नहीं, कहीं ऐसा न हो कि उस की रूपेश के प्रति सहानुभूति उलटी उसी के पति को गलतफहमी का निशाना बना दे... नहीं कुछ और सोचना पड़ेगा. जब से वह रूपेश से मिली है, उस का उदास चेहरा आंखों के आगे से हटता ही नहीं है.

हफ्ता गुजर गया. एक शाम मिहिर झूमतागाता घर में घुसा. उस के हाथ में एक कागज था. रमला के पास जा कर प्यार से बोला, ‘‘रोमी जान एक खुशखबरी...’’

‘‘क्या?’’

‘‘मेरी प्रमोशन...’’

‘‘क्या हुआ?’’

‘‘प्रमोशन और एक ऐक्स्ट्रा इंक्रीमैंट भी मिला है. देखो, मैं ने कहा था न... तुम उसे तरीके से संभालना जानती हो.’’

मिहिर की आखिरी बात उसे छू गई. परंतु उस दिन की कोई बात बता कर मिहिर की खुशी को कम करना नहीं चाहती थी. ठीक है अभी नहीं फिर कभी बताना तो पड़ेगा ही.

आखिर एक दिन मौका देख कर रमला ने उस दिन हुई बातचीत को ज्यों का त्यों मिहिर के सामने रख दिया.

‘‘अच्छा ऐसा है... पर बौस

ने कभी किसी भी औफिस कर्मचारी को नहीं बताया कि उन के साथ इतनी भयानक दुर्घटना घटी है.

वैसे मुझे तो सुन कर भी विश्वास नहीं होता.’’

‘‘यही सच है. तभी तो लड़कियों से नफरत करता है, क्योंकि हर लड़की में उसे भावना नजर आती है.’’

मिहिर भी सोच में पड़ गया कि तभी वह औरतों के साथ कोई गलत काम नहीं करता. सिर्फ शराब पीता है, उन के साथ हंसीमजाक करता है और फिर गिफ्ट दे कर खुश होता है... हम सब मजाक उड़ाते थे. मिहिर सब सुन कर दुखी व परेशान था.

कुछ देर बाद रमला ने मुंह खोला, ‘‘एक बात कहूं?’’

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